29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव शहर में मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल में बम विस्फोट हुआ था। इसमें 6 लोगों की मौत और 100 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे।
शुरुआती जांच ATS और बाद में NIA ने की। प्रमुख आरोपियों में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित सहित सात लोग शामिल रहे.
कोर्ट का फैसला – क्यों बरी हुए सभी आरोपी?
2025 में NIA की विशेष अदालत ने सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया।
अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष ये साबित नहीं कर पाया कि जिस बाइक में बम रखा गया था, वह साध्वी प्रज्ञा की थी या वह उनके कब्जे में थी।
कर्नल पुरोहित पर RDX लाने या बम सप्लाई करने के भी सबूत पेश नहीं किए जा सके।
जांच एजेंसियों ने सबूत इकट्ठा करने और आग्नेयास्त्रों के प्रमाण उपलब्ध कराने में चूक की, जिससे कई महत्वपूर्ण CD और फॉरेंसिक रिपोर्ट अमान्य हो गईं.
ट्रायल के दौरान 30 से ज्यादा गवाह अपने बयान से मुकर गए।
अदालत ने साफ कहा: “सिर्फ नैरेटिव या राजनैतिक रंग देने से कोई दोषी नहीं होता, जब तक ठोस सबूत न हों।”
फैसले पर क्यों उठे सवाल?
पीड़ित परिवारों और सामाजिक संगठनों ने फैसले पर नाराज़गी जताई है, और आगे ऊपरी अदालत में अपील की बात कही है।
राजनीतिक हलकों में भगवा आतंकवाद (“Saffron Terrorism”) और जांच की निष्पक्षता को लेकर तीखी बहस छिड़ी है — बीजेपी इसे कांग्रेस की साजिश बता रही है, जबकि विपक्ष जांच एजेंसियों की नाकामी पर सवाल उठा रहा है.
केस से जुड़े कई अधिकारियों और गवाहों ने यह भी आरोप लगाया कि केस में बड़े नेताओं और संगठनों के नाम “राजनीतिक दबाव” में लिए/छोड़ दिए गए। कई गवाहों ने भी दबाव की बात कोर्ट में कही.
साध्वी प्रज्ञा और उनके सहयोगियों ने कोर्ट से बरी होने के बाद मीडिया में दावा किया कि उन्हें नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ, मोहन भागवत का नाम लेने के लिए टॉर्चर किया गया था — इसपर बहस और बढ़ गई है.
जांच एजेंसियों पर आरोप
ATS और NIA की कार्यशैली पर अदालत ने भी सवाल उठाए: विस्फोटक कहां से आया, किसने रखा — इसका कोई प्रमाणात्मक लिंक पेश नहीं किया गया।
कई सबूत या तो नष्ट हो गए या उनकी फॉरेंसिक जांच संदिग्ध रही।
अभियोजन और जांच के दौरान हुए तकनीकी चूकों की वजह से आरोपियों पर केस टिक नहीं पाया.
नतीजा और मौजूदा बहस
17 साल चली सुनवाई के बाद सभी आरोपी बरी हो गए, लेकिन यह सवाल अधूरा रह गया कि असल गुनाहगार कौन है।
इस फैसले ने भारत की कानून व्यवस्था, जांच एजेंसियों की जवाबदेही और राजनैतिक प्रभाव को लेकर बड़ी सार्वजनिक बहस छेड़ दी है।